नवम पर जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है। व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है। इस दोष का निवारण नितान्त आवश्यक होता है ।
प्राचीन काल से ही स्त्री और पुरुष दोनों के लिये यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। वेदाध्ययन के बाद जब युवक-युवती में सामाजिक परम्परा निर्वाह करने की क्षमता व परिपक्वता आ जाती है तो उसे गृर्हस्थ्य धर्म में प्रवेश कराया जाता है।